मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। इसे सरल भाषा में “जीने के नियम” कह सकते हैं।
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) किसी भी लोकतांत्रिक देश की कानूनी और संवैधानिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये अधिकार नागरिकों को स्वतंत्रता, समानता, और गरिमा के साथ जीवन जीने की गारंटी देते हैं। भारत के संविधान में इन अधिकारों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है ताकि हर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं को पूरी तरह से विकसित करने का अवसर मिल सके।
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution)
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) वे अधिकार हैं जो भारत के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार लोकतंत्र पर आधारित है जो व्यक्ति के चंहुमुखी विकास (भौतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक) के लिए मौलिक और अनिवार्य है इसमें राज्य द्वारा भी हस्ताक्षेप नहीं किया जा सकता है। मौलिक अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधारभूत सिद्धांत होते हैं और इनका उद्देश्य नागरिकों को भेदभाव और शोषण से बचाना है।
मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है और मूल अधिकारों को न्यायालय द्वारा मूलभूत ढांचा माना गया है। 1931 ई. में कराची अधिवेशन (अध्यक्ष सरदार वल्लभ भाई पटेल) में कांग्रेस ने घोषणा-पत्र में मूल अधिकारों की मांग की। मूल अधिकारों का प्रारूप जवाहर लाल नेहरू ने बनाया था।
मौलिक अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?
भारत का संविधान सभी भारतीय नागरिकों को छः मौलिक अधिकार प्रदान करता है। जिसे अनुच्छेद सहित हमने सरल भाषा में विस्तार से समझाने का प्रयास किया है।
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) – भारत के मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार प्रदान किया गया था। परन्तु 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा संपत्ति का अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा कर भाग XII में अनुच्छेद 300 (A) के तहत कानूनी अधिकार बना दिया गया अब कुल छः मौलिक अधिकार है।
भारतीय संविधान में भाग-III, अनुच्छेद-12 से 35 में मौलिक अधिकारों का विवरण है। संविधान के भाग-III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है। मैग्नाकार्टा अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में जारी किया गया था। यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित पहला लिखित प्रपत्र था।
अनुच्छेद 14-18: समानता का अधिकार
समानता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के तहत दिया गया एक मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) है, जो कानून के समक्ष समानता, भेदभाव के विरुद्ध संरक्षण, और सामाजिक समानता सुनिश्चित करता है। यह अस्पृश्यता, भेदभाव, और अनुचित विशेषाधिकारों को समाप्त कर समान अवसर और न्याय प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 14: सभी के लिए कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण।
- अनुच्छेद 15: धर्म, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध।
- अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान अवसर और आरक्षण की अनुमति।
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का उन्मूलन और इसे दंडनीय अपराध घोषित करना।
- अनुच्छेद 18: नागरिक उपाधियों का अंत, सिवाय सैन्य और शैक्षणिक उपाधियों के।
अनुच्छेद 19-22: स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 के तहत दिया गया मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) है, जो प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति, आंदोलन, पेशा, जीवन, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित अधिकारों की गारंटी देता है। यह व्यक्ति को अवैध गिरफ्तारी, नजरबंदी, और अन्यायपूर्ण कार्रवाई से भी संरक्षण प्रदान करता है।
अनुच्छेद | संक्षिप्त विवरण |
अनुच्छेद 19 | भाषण, अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सभा, संघ बनाने, आवागमन, निवास, और पेशा चुनने की स्वतंत्रता। |
अनुच्छेद 20 | अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण। |
अनुच्छेद 21 | जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार। |
अनुच्छेद 21A | 6-14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार। |
अनुच्छेद 22 | कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नजरबंदी से संरक्षण। |
अनुच्छेद 23-24: शोषण के विरुध्द अधिकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार भारतीय संविधान में नागरिकों को शोषण, जबर्दस्ती श्रम, बाल श्रम, और मानव तस्करी जैसे शोषणात्मक व्यवहारों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए दिए गए हैं। यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24 के तहत संरक्षित किए गए हैं। इन अनुच्छेदों का उद्देश्य शोषण, शारीरिक श्रम, बच्चों के साथ अन्याय, और मानव तस्करी जैसी प्रथाओं को समाप्त करना है।
- अनुच्छेद 23 – किसी भी व्यक्ति को मानव तस्करी, बन्धुआ श्रम या जबर्दस्ती श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 24 – 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कामों में, जैसे कारखानों और खनन में काम करने से रोका गया है।
अनुच्छेद 23: मानव का दुर्व्यपार और बलात् श्रम का प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति मानव तस्करी के लिए, बन्धुआ श्रम के लिए, या जबर्दस्ती श्रम के लिए नहीं रखा जा सकता। यह अधिकार भारत के नागरिक और गैर-नागरिक दोनों के लिये उपलब्ध है।
- अनुच्छेद 23 (1) – मानव का दुर्व्यपार, बेगार तथा बलात श्रम का प्रतिषेध, जो की दंडनीय अपराध है।
- अनुच्छेद 23 (2) – मानव दुर्व्यपार शब्द में शामिल हैं
- पुरुष, महिला और बच्चों की वास्तु के समान खरीद-बिक्री।
- वेश्यावृत्ति।
- देवदासी व दास प्रथा।
अनुच्छेद 24: कारखानों आदि में बालकों के नियोजन पर प्रतिबन्ध
14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों जैसे कारखाने और खनन में काम करने से रोकने का अधिकार दिया गया है। यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों को शारीरिक और मानसिक शोषण से बचाया जाए और उन्हें शिक्षा का अवसर मिले, न कि उन्हें श्रमिक के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वह अधिकार है, जो किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म को चुनने, उसे व्यक्त करने, उसे प्रचारित करने, और उसके अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, बशर्ते वह सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता के विरोध में न हो। इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में स्पष्ट रूप से सुनिश्चित किया गया है।
- अनुच्छेद 25 – धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार।
- अनुच्छेद 26 – धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता।
- अनुच्छेद 27 – विशेष धर्म हेतु कर देने से मुक्ति।
- अनुच्छेद 28 – शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा या उपासना का प्रतिषेध।
अनुच्छेद 25 के अनुसार धर्म की स्वतंत्रता में दूसरों का धर्म परिवर्तन करने की स्वतंत्रता शामिल नहीं है और अनुच्छेद 27 कर (Tax) लगाने का निषेध करता है न की शुल्क लगाने का अतः तीर्थ यात्रियों से शुल्क उगाही की जा सकती है।
अनुच्छेद 29-30: संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
भारतीय संविधान का भाग-III (Fundamental Rights of Indian Constitution) में अनुच्छेद 29 और 30 भारत के नागरिकों और अल्पसंख्यकों को संस्कृति, भाषा, लिपि और शिक्षा के संरक्षण और संवर्धन से जुड़े अधिकार प्रदान करते हैं। ये अधिकार भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता और अल्पसंख्यकों के हितों को संरक्षित करने के लिए बनाए गए हैं।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार भारतीय नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि, और संस्कृति को संरक्षित करने तथा अल्पसंख्यक समूहों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधित करने का अधिकार प्रदान करते हैं।
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 29 यह सुनिश्चित करता है कि देश के सभी नागरिक, विशेष रूप से अल्पसंख्यक वर्ग, अपनी भाषा, लिपि, और संस्कृति को संरक्षित कर सकें। यह अधिकार नागरिकों को सांस्कृतिक और शैक्षणिक स्वतंत्रता प्रदान करता है और उनके विरुद्ध भेदभाव को रोकता है।
- अनुच्छेद 29 (1) – भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने विशिष्ट भाषा, लिपि, संस्कृति को बनाये रखने का अधिकार है।
- अनुच्छेद 29 (2) – राज्य द्वारा पोषित किसी भी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमे से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यक वर्गों का शिक्षा संस्थाओं की स्थापना
अनुच्छेद 30 भारत के धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है कि वे अपनी पहचान, धर्म, और संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए शैक्षणिक संस्थान स्थापित और प्रबंधित कर सकें। यह अधिकार मौलिक अधिकार (Fundamental Rights of Indian Constitution) के तहत आता है और अल्पसंख्यकों को उनकी विशेष पहचान बनाए रखने में मदद करता है।
- धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी रूचि की शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रबंध का अधिकार होगा।
- राज्य किसी धर्म या भाषा आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
अनुच्छेद 31: संपत्ति का अनिवार्य अर्जन
अनुच्छेद 31 भारतीय संविधान के मूल प्रारूप में संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों का हिस्सा था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि राज्य जब किसी नागरिक की संपत्ति का अधिग्रहण करे, तो वह उचित प्रक्रिया का पालन करे और उचित मुआवजा प्रदान करे। हालांकि, 44वें संविधान संशोधन (1978) के बाद यह अब मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि इसे विधिक अधिकार के रूप में भाग-12 अनुच्छेद-300A में शामिल किया गया है।
- 44वें संविधान संशोधन (1978) के तहत अनुच्छेद 31 को मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया।
- इसे भाग 12, अनुच्छेद 300A के तहत एक विधिक अधिकार के रूप में संरक्षण प्रदान किया गया है।
अनुच्छेद 32: संवैधानिक उपचारों का अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) के संरक्षण के लिए न्यायालय में सीधे अपील करने का अधिकार प्रदान करता है। इसे “मौलिक अधिकारों का संरक्षक” कहा जाता है, क्योंकि यह इन अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में नागरिकों को न्याय दिलाने का प्रमुख माध्यम है।
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचारों का अधिकार को संविधान का हृदय एवं आत्मा कहा है।
- यदि किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सीधे सुप्रीम कोर्ट में न्याय की अपील कर सकता है।
उच्चतम न्ययालय अनुच्छेद 32 (2) के तहत पांच प्रकार के रिट जारी करता है
- बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- परमादेश (Mandamus)
- अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
- प्रतिषेध (Prohibition)
- उत्प्रेषण (Certiorari)
मूल अधिकारों से सम्बंधित अन्य अनुच्छेद
भारत में मूल अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष अधिकार हैजो व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए नेतांत आवश्यक है। इन मूल अधिकारों में अनुच्छेदों की संख्या 19 है जो अनुच्छेद 14 से 32 तक हैं। मूल अधिकारों से सम्बंधित कुछ अन्य अनुच्छेद निम्न है
अनुच्छेद 12: राज्य की परिभाषा
भारतीय संविधान (Indian Constitution) के अनुच्छेद 12 में राज्य (State) की परिभाषा दी गई है। यह संविधान के भाग-3 में शामिल है, जहां मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य शब्द में निम्नांकित शामिल है
- भारत सरकार एवं संसद (लोकसभा और राज्यसभा)
- राज्य सरकार एवं विधानमंडल
- सभी स्थानीय प्राधिकरण (नगर निगम, पंचायत, नगर पालिका, जिला परिषद)
- अन्य सभी वैधानिक या गैर-संवैधानिक प्राधिकरण (सरकारी कंपनियां, सार्वजनिक उपक्रम (PSUs), विश्वविद्यालय, राष्ट्रीयकृत बैंक, बिजली बोर्ड, जल प्राधिकरण जैसे स्वायत्त निकाय)
न्यायपालिका राज्य की परिभाषा में शामिल नहीं है अर्थात न्यायपालिका को सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर रखा गया है।
अनुच्छेद 13: असंगत तथा अल्पिकरण करने वाली विधियाँ
न्यायिक पुनर्विलोकन (अनुच्छेद-13) USA से लिया गया है। इस अनुच्छेद के तहत् राज्य कोई ऐसी विधि नहीं बना सकती जो मूल अधिकारों को छीनती हैं या उसे कम करती है या उससे बेमेल है। अनुच्छेद 13 का प्रावधान निम्न है
- अनुच्छेद 13 (1) आच्छादन का सिध्दांत (Doctrine of Eclipse) – संविधान लागू होने से पहले बने सभी कानून, जो मौलिक अधिकारों के विपरीत या असंगत हैं, उन हदों तक शून्य हो जाएंगे जहां तक वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
- अनुच्छेद 13 (2) पृथक्करणीयता का सिध्दांत (Doctrine of Severability) – भारतीय संविधान का पृथक्करणीयता का सिद्धांत (Doctrine of Severability) यह सुनिश्चित करता है कि यदि किसी कानून का कोई भाग असंवैधानिक या मौलिक अधिकारों के विपरीत है, तो केवल वह असंवैधानिक भाग अमान्य होगा, और शेष कानून लागू रहेगा, बशर्ते कि असंवैधानिक भाग को शेष कानून से अलग किया जा सके।
- अनुच्छेद 13 (3) विधि की परिभाषा – विधि में अधिनियम, अध्यादेश, नियम, विनियम, उपनियम और किसी भी प्रकार का कानूनी आदेश शामिल है।कानून (विधि) में केवल विधायिका द्वारा बनाए गए कानून ही नहीं, बल्कि अन्य नियम और अधिनियम भी आते हैं।इसमें कानून के तहत कस्टम और परंपराएं भी आती हैं जो अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
- अनुच्छेद 13 (4) – 24वें संविधान संशोधन 1971 द्वारा जोड़ा गया। इसमें न्यालय ने विधि एवं संविधान संशोधन विधि अंतर स्थापित किया।
मूल अधिकारों से सम्बंधित अन्य उपबंध
- अनुच्छेद 33 – संसद को यह अधिकार है की वह सैन्य बालों और अर्द्ध – सैनिक बालों के सदस्यों के मूल अधिकार को प्रतिबंधित कर सकता है।
- अनुच्छेद 34 – जब किसी क्षेत्र में सेना विधि या सैन्य शासन प्रवित्त हो तो मूलाधिकार पर निर्बन्धन लगाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 35 – संसद मूल अधिकारों को प्रभावी बनाने के लिए दंड भी दे सकती है। और इसके लिए कानून भी बना सकती है। यह अधिकार राज्य विधानमंडल को प्राप्त नहीं है।
अधिकार बिना कर्तव्य उसी प्रकार है जैसे मनुष्य बिना परछाई के।
मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights of Indian Constitution) का संरक्षक उच्चतम और उच्च न्यायालय होता है। युद्ध और बाह्य आक्रमण के आधार पर अनुच्छेद 19 स्वतः ही निलंबित हो जाता है जबकि अनुच्छेद 20 और 21 को छोड़कर अन्य अनुच्छेद का निलंबन राष्ट्रपति के आदेश पर होता है।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
मूल अधिकार कहाँ से लिया गया है?
भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है।
6 मौलिक अधिकार कौन से हैं?
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) भाग-3 (अनुच्छेद-12 से 35) में वर्णित हैं। यह 6 मौलिक अधिकार हैं: समता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
अनुच्छेद 20 और 21 क्या है?
अनुच्छेद 20 यह किसी भी व्यक्ति को बिना उचित प्रक्रिया के गिरफ्तारी, दंड या दोषी ठहराने से सुरक्षा प्रदान करता है। और अनुच्छेद 21 यह हर व्यक्ति को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है, और उसे उचित कानूनी प्रक्रिया के बिना स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।
- आखिरी अपडेट: 4 मिनट पहले
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