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आज इस पोस्ट में हम जानेंगे की रस के कितने अंग (Ras ke Ang) होते हैं? स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव किसे कहते हैं। रस के मुख्य चार अंग (Ras ke Ang) होते हैं इसके बारे में विस्तार से निचे उदाहरण सहित समझाया गया है।
रस हिंदी में (Ras in Hindi)
आचार्य भरत मुनि के अनुसार विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रस (Ras in Hindi) की अवधारणा को पूर्णता प्रदान करने में उनके प्रमुख चार अंग (Ras ke Ang) स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
रस के अंग (Ras ke Ang)
रस के चार प्रमुख अंग (भाव) है: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
स्थायी भाव
स्थायी भाव रस का पहला एवं सर्वप्रमुख अंग है। भाव शब्द की उत्पत्ति ‘भ्‘ धातु से हुई है। जिसका अर्थ है संपन्न होना या विद्यमान होना।
अतः जो भाव मन में सदा अभिज्ञान ज्ञात रूप में विद्यमान रहता है उसे स्थायी या स्थिर भाव कहते हैं। जब स्थायी भाव का संयोग विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से होता है तो वह रस रूप में व्यक्त हो जाते हैं।
सामान्यतः स्थायी भावों की संख्या अधिक हो सकती है किंतु विश्वनाथ जी ने स्थायी भाव 9 ही माने हैं।
क्र. | स्थायी भाव | रस |
---|---|---|
1 | रति | शृंगार |
2 | शोक | करुण |
3 | हास | हास्य |
4 | उत्साह | वीर |
5 | भय | भयानक |
6 | क्रोध | रौद्र |
7 | आश्चर्य | अद्भुत |
8 | निर्वेद | शांत |
9 | जुगुप्सा | वीभत्स |
वर्तमान समय में इसकी संख्या 11 कर दी गई है तथा अनुराग नामक स्थायी भाव की परिकल्पना की गई है। आगे चलकर माधुर्य चित्रण के कारण वात्सल्य नामक स्थायी भाव की भी परिकल्पना की गई है। इस प्रकार रस के अंतर्गत 11 स्थायी भाव का मूल रूप में विश्लेषण किया जाता है।
क्र. | स्थायी भाव | रस |
---|---|---|
1 | रति | शृंगार |
2 | शोक | करुण |
3 | हास | हास्य |
4 | उत्साह | वीर |
5 | भय | भयानक |
6 | क्रोध | रौद्र |
7 | आश्चर्य | अद्भुत |
8 | निर्वेद | शांत |
9 | जुगुप्सा | वीभत्स |
10 | वत्सल | वात्सल्य |
11 | अनुराग | भक्ति |
इसे भी पढ़े – रस की परिभाषा, भेद और उदाहरण
विभाव
भावों का विभाव करने वाले अथवा उन्हें आस्वाद योग्य बनाने वाले कारण विभाव कहलाते हैं। विभाव कारण हेतु निर्मित आदि से सभी पर्यायवाची शब्द हैं। विभाव रस का दूसरा अनिवार्य एवं महत्वपूर्ण अंग है।
विभाव का मूल कार्य सामाजिक हृदय में विद्यमान भावों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है।
विभाव के प्रमुख अंग
- आलंबन विभाव
- उद्दीपन विभाव
- आश्रय
(i). आलंबन विभाव
आलंबन का अर्थ है आधार या आश्रय अर्थात जिसका अवलंब का आधार लेकर स्थायी भावों की जागृति होती है उन्हें आलंबन कहते हैं। सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि जो सोए हुए मनो भावों को जागृत करते हैं वह आलंबन विभाव कहलाते हैं।
जैसे
श्रृंगार रस के अंतर्गत नायक-नायिका आलंबन होंगे, अथवा वीर रस के अंतर्गत युद्ध के समय में भाट एवं चरणों के गीत सुन शत्रु को देखकर योद्धा के मन में उत्साह भाव जागृत होगा। इसी प्रकार आलंबन के चेष्टाएं उद्दीपन विभाव कहलाती है जिसके अंतर्गत देशकाल और वातावरण को भी सम्मिलित किया जाता है।
(ii). उद्दीपन विभाव
उद्दीपन का अर्थ है उद्दीप्त करना बढ़ावा देना या भड़काना जो जागृत भाव को उद्दीप्त करें वह उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।
जैसे
- वीर रस के अंतर्गत शत्रु की सेना, रणभूमि, शत्रु की ललकार, युद्ध वाद्य आदि उद्दीपन विभाव होंगे।
- श्रृंगार रस के अंतर्गत – प्राकृतिक सुषमा, चांदनी रात, विहार, सरोवर आदि।
(iii). आश्रय
जिसके ह्रदय में भाव उत्पन्न होता है उसे आश्रय कहते हैं।
अनुभाव
आलंबन और उद्दीपन के कारण जो कार्य होता है उसे अनुभाव कहते हैं। शास्त्र के अनुसार आश्रय के मनोगत भावों को व्यक्त करने वाली शारीरिक चेष्टाएं अनुभाव कहलाती है। अनुभाव रस योजना (Ras ke Ang) का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है।
जैसे
श्रृंगार रस के अंतर्गत नायिका के कटाक्ष, वेशभूषा या अंग संचालन आदि तथा वीर रस के अंतर्गत – भौंह टेढ़ी हो जाना, नाक का फैल जाना, शरीर में कंपन आदि अनुभाव कहे गए हैं।
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अनुभाव की संख्या पाँच है:
- कायिक
- वाचिक
- मानसिक
- सात्विक
- आहार्य
(i). कायिक – शरीर की चेष्ठाये कायिक अनुभाव कहलाती है। यह जान-बूझकर प्रयास पूर्वक किये जाते हैं।
जैसे: हाथ से इशारा करना, कटाक्षपात आदि।
(ii). वाचिक – भाव-दशा के कारण वचन में आये परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं।
(iii). मानसिक – आंतरिक वृत्तियों से उत्पत्र प्रमोद आदि भाव को मानसिक अनुभाव कहते हैं।
(iv). सात्विक – वह अनुभाव है जो स्थिति के अनुरूप स्वयं ही उत्पन्न हो जाते हैं सात्विक अनुभाव कहलाते हैं।
सात्विक अनुभाव की संख्या 8 मानी गई है – स्तंभ, रोमांच, स्वेद, कंपन, विवरण, स्वरभंग, अश्रु, प्रलय
(v). आहार्य – बनावटी वेश रचना को आहार्य अनुभाव कहते हैं।
संचारी भाव
रस (Ras in Hindi) के अंतिम महत्वपूर्ण अंग संचारी भाव को माना गया है। वे भाव जिनका कोई स्थायी कार्य नहीं होता संचारी भाव कहलाते है। यह भाव तत्काल बनते हैं एवं मिटते हैं।
सामान्य शब्दों में स्थायी भाव के जागृत एवं उद्दीपन होने पर जो भाव तरंगों की भांति अथवा जल के बुलबुलों की भांति उड़ते हैं और विलीन हो जाते हैं तथा स्थायी भाव को रस की अवस्था तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध होते हैं उन्हीं को संचारी भाव कहते हैं।
जैसे
पानी में बनने वाले बुलबुले क्षणिक होने पर भी आकर्षक एवं स्थिति परिचायक होती हैं, वैसे ही इनके भी स्थिति को समझना चाहिए।
संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है
1. हर्ष | 18. निर्वेद |
2. विषाद | 19. घृति |
3. त्रास | 20. मति |
4. लज्जा (ब्रीड़ा) | 21. बिबोध |
5. ग्लानि | 22. वितर्क |
6. चिंता | 23. श्रम |
7. शंका | 24. आलस्य |
8. असूया | 25. निद्रा |
9. अमर्ष | 26. स्वप्न |
10. मोह | 27. स्मृति |
11. गर्व | 28. मद |
12. उत्सुकता | 29. उन्माद |
13. उग्रता | 30. अवहित्था |
14. चपलता | 31. अपस्मार |
15. दीनता | 32. व्याधि |
16. जड़ता | 33. मरण |
17. आवेग | – |
रस (Ras in Hindi) की जानकारी रखते हुए रस युक्त काव्य पढ़ना साहित्य शिक्षण का मूल धर्म है। आचार्य भरत मुनि का मानना है कि अनेक द्रव्यों से मिलाकर तैयार किया गया प्रमाणक द्रव्य ना खट्टा होता है ना मीठा और ना ही तीखा।
अधिक पूछे जाने वाले सवाल
अनुभाव के भेद कितने है?
अनुभाव की संख्या पाँच है: कायिक, वाचिक, मानसिक, सात्विक और आहार्य अनुभाव।
रस के कितने अंग होते है?
रस के चार प्रमुख अंग होते हैं: स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव।
विभाव किसे कहते हैं?
भाव को प्रकट करने वाला कारण विभाव कहलाता हैं। अर्थात् वह साधन जिनके कारण हमारे मन में भाव उत्पन्न होता हैं, उसे विभाव कहते हैं।
- आखिरी अपडेट: 6 मिनट पहले
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